चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में रोग वर्गीकरण – तुलनात्मक अध्ययन

चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में रोगों का भेद और वर्गीकरण विभिन्न दृष्टिकोणों और प्राथमिकताओं के कारण अलग-अलग है। नीचे विस्तार से दोनों ग्रंथों के रोग वर्गीकरण का तुलनात्मक विवेचन प्रस्तुत है:
1. रोग वर्गीकरण का आधार
चरक संहिता
चरक संहिता मुख्यतः रोगों को दोष (वात, पित्त, कफ), धातु, मल, स्थान, कारण इनके आधार पर वर्गीकृत करती है। यह ग्रंथ रोगों का वर्गीकरण काफी विस्तृत और चिकित्सा-आधारित है। चरक के अनुसार वातजन्य रोग लगभग 80 हैं, पित्तजन्य 40 और कफजन्य 20 रोग बताए गए हैं। साथ ही, यह ग्रंथ संक्रामक रोग, मानसिक रोग और भोजन से उत्पन्न रोगों का भी वर्णन करता है। चरक संहिता में रोगों के निदान, लक्षण, कारण और उपचार का गहन विवरण मिलता है।सुश्रुत संहिता
सुश्रुत संहिता शल्य (सर्जिकल) चिकित्सा पर अधिक केंद्रित है। इसमें रोगों का वर्गीकरण शरीर के अंगों, विकार के प्रकार (कटना, छेदन, घाव, निष्कर्षण आदि) तथा शल्य चिकित्सा से संबंधित होता है। सुश्रुत संहिता में त्वचा रोग, भ्रूण रोग, आँत और शल्य-क्रियायें जैसे विभाजन मौजूद हैं। यह भी मानव शरीर की रचना, अंग-प्रत्यंग के विवरण और चिकित्सा क्रियाओं का व्यापक विवेचन करता है।
2. रोगों की संख्या
चरक संहिता में वातजन्य 80, पित्तजन्य 40, और कफजन्य 20 रोगों का विवरण है, कुल लगभग 140 रोगों का सटीक वर्गीकरण मिलता है।
सुश्रुत संहिता में सर्जिकल रोगों सहित त्वचा, हड्डी, नेत्र, नाक, त्वचा एवं शल्य चिकित्सा योग्य रोगों की संख्या चरक की तुलना में अधिक विस्तृत है। इसमें हजार से अधिक रोगों का विवरण मोड्यूलर रूप में मिल सकता है, खासकर शल्य रोगों में।
3. चिकित्सा दृष्टिकोण का भिन्नता
चरक संहिता में रोगों का निदान पंचभूत सिद्धांत, दोष सिद्धांत, और औषध रहस्यों पर आधारित है। यह अधिकतर आंतरिक चिकित्सा, आयुर्वेदिक दवाओं और पंचकर्म पर जोर देती है।
सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा, ऑपरेशन, टांके, प्लास्टिक सर्जरी, हड्डी जोड़ना, चिकित्सा उपकरणों का वर्णन मिलता है। यह रोगों के प्रायः शल्य उपचारों के निर्देश देती है।
4. निदान पद्धतियां
चरक संहिता में रोग के निदान के लिए हेतु, लक्षण, स्थान, समय, कारण का वर्णन तथा निरोगीकरण के लिए चिकित्सा, आहार और शांतिदायक उपायों का विस्तृत उल्लेख है।
सुश्रुत संहिता शल्य क्रियाओं का क्रम, औजारों का प्रयोग और महामारी रोगों में निरीक्षण पर ज़््यादा बल देती है।
5. विशेष उल्लेख
चरक और सुश्रुत दोनों का योगदान मिलाकर आयुर्वेद का शास्त्रीय और वैज्ञानिक आधार बनता है। चरक संहिता द्वारा रोगों की व्यापक चिकित्सा पद्धतियों को समझा जा सकता है, तो सुश्रुत से प्राचीन भारत की शल्य-कला की जानकारी मिलती है।
निष्कर्ष
चरक संहिता और सुश्रुत संहिता दोनों ही प्राचीन भारतीय चिकित्सा की अमूल्य धरोहर हैं जिनमें रोगों का वर्गीकरण, निदान और उपचार का अपना महत्व है। चरक संहिता आंतरिक चिकित्सा व दोषों पर केंद्रित है जबकि सुश्रुत शल्य चिकित्सा, शरीर रचना और ऑपरेशन-कौशल पर। दोनों की ज्ञान व्यवस्था मिलकर प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा की समग्र समझ प्रदान करती है।
संदर्भ:
चरक संहिता – विकिपीडिया
सुश्रुत संहिता – विकिपीडिया
आयुर्वेद के अनुसार व्याधि वर्गीकरण
Scholarly comparative article on Charaka and Sushruta

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